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वे लोग जो स्त्री को डरपोक, कमजोर और अबला मानते हैं, मुझे उन पर हँसी आती है। मैंने कमज़ोर कही जानी वाली एक स्त्री को देखा है, जो अपने बच्चे को बाघ के सामने देखकर उससे लड़ गई। वह शायद पति की मार से स्वयं को बचा न पाई हो। जब उसने अपने बच्चे को बाघ के सामने आसान चारा बनते देखा, तो ऐसी स्थिति में भागने के स्थान पर, स्वयं को बचाने के स्थान पर कभी न गिरने वाली दीवार बन गई। उसे तब अपनी कमज़ोरी का अहसास नहीं हुआ। बस अपना बच्चा सामने था और उसे बचाने के लिए उसने अपनी सारी शक्ति झोंक दी। हैरानी तब हुई, जब पता चला कि अपने से दस गुना ताकत वाले बाघ को मार गिराया। तब अहसास होता है कि पति की मार चुपचाप खाना उसकी कमज़ोरी नहीं है। अपने रिश्ते की मर्यादा है, जिसे वह तोड़ती नहीं है। अतः यह उसकी कमज़ोरी नहीं उसका साहस है। वरना एक बार मारने पर तो अपनी गाय भी लात मारती है। अतः अगर वह बार-बार मार खाकर फिर उसी इंसान के साथ है, तो वह सबसे बड़ी साहसी है। क्योंकि ऐसा साहस हर कोई दिखा नहीं पाता है।
स्त्री की क्षमताएँ पुरुषों से हज़ार गुना अधिक है। बस वह दिखाती मात्र अंश है। शायद यही तो उसका साहस है कि एक निर्बल को बना देती साहसी है।
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